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गामक लोक

आई गामक एकटा संगी सं भेंट भेल... ओ किछु निराश लगय छलाह...खोंचरलाह पर कहलाह जे लोक सभ हुनका देहाती...अनाड़ी...गमार कहय छथि..जबकि ओ हुनका सं कोनो मामला में कम नहिं छथिन्ह...हम हुनका कहलयन्हि जे अहां निराश किएक होय छी... अहां कहिऔ जे हां हम गाम घर सं छी...देहात सं छी मुदा...मुदा अहां जे आनन्द मस्ती ल लेने छी ओतय त ओ कहिओ नहिं लय सकय अ...सिर्फ ईहे बात अछि जे कि अहां ओकरा तरहे मैनेजमेंट के नौकरी नहिं सरकारी नौकरी कय रहल छी... मुदा कम की छी... अहां गाम घर..देहात के बारे में त सभ जानिते छी...शहरक रहन सहन...कॉलेजक पढ़ाई...लड़की संग घुमनाय...डिस्को... पार्टी... बोतल... सभ कएने छी...त कोन मामला में कम छी...अहां निफिक्र रहु आ आब जे ओ बोलत त जमि क डॉयलॉग सुना दिअऊ.
एहन कई बेर भ जाई छै...मुदा गाम में रहय के किछु अलगे आनन्द छै. एक बात छै जे गामक लोक...युवक जे आनन्द अपन जीवन के लैत छथि वो शहरक युवक नहिं लय पाबैत छथि...जखन कि गामक लोक गामक आओर शहरक दुनु जीवनक आनन्द ल लैत छथि...ओ गामक हर पावनि.. ,रीति रिवाज... लोक संस्कार... सं त परिचित रहिते छथि शहरक चाल चलन में सेहो पाछा नहिं रहैत छथि...गामक खेत खलिहान...दलान...मटरगश्ती एकर मजा शहरक युवक नहिं उठा पाबैत छथि मुदा गामक युवा त गाम... शहर दुनु जगह अपन परचम लहरौने रहैत छथि.
शहर क युवक सभ जूड़ि शीतल... बरसाइत... चौरचन... कोजगरा... सामा चकेवा... कोहबर... अल्हुआ.. सुथनी..किशौर...कंसार वाली के हाथक भुजा...कुसियार खेत में कुसियार खनाय.. मटर तोड़ि खनाय...ई सभ सं अनजान रहय छथि. गुल्ली डंडा...कंचा..गोली खेलनाय...कबड्डी एहि सभक मस्ती नहिं लय पाबय छथि.. आमक.. लतामक ...कटहलक गाछी में घुमनाय... टिकुला चुननाय ...दोसराक गाछी सं ढेला मारि फल तोड़नाय... जामुन बिछनाय...इमली खयनाय ... खजुर बिछनाय... एकर आनन्द किछ आर अछि. नहिं किछ त दिन भर गप्प मारय छी... ताश खेलय छी... पोखरि में डुबकि मारय छी... बंसी लय पोखरि कात में बैठि माछ मारय छी... एकरा कि कहल जाय... कि एकर आनन्द शहर में मिलि सकय अ ? कहिओ नहिं.
दुर्गा पूजाक मेला होय आ इन्द्र पूजाक... जन्माष्टमीक भीड़ भाड़... मेलाक अंतिम दिन छुरा-छुरी भोकनाय वाला दृश्य...कोनो ठाम पोखरक कात में मेला ...त कतोउ खेत में मेला...रामलीला... थियेटर... लक्ष्मण झूला... सांडक लड़ाई... खस्सी बोतो केर लड़ाई... आ फेर मवेशीक पूजा पखेब होय... सभ गाम घर में देखबा लेल मिलत... एहि हिसाब सं गामक लोक सभ हरफनमौला... ऑलरांउडर होय छथि... सभक आनन्द ... मस्ती लेने रहय छथि.. ताहिं लेल गामक लोक के...युवक के... शहरी युवक...लोक सं अपना के कोनो दृष्टि सं कमतर नहिं मानय के चाहि . कय मामला में ओ हुनका सं सवा सेर साबित होय छथिन्ह.

1 टिप्पणी:

  1. जे आहान कहलीयेय से सच छै, कियाकि वास्त्विक जिन्दगी मैं सीढी चढनाई आसान छै, किंतु नींचा उतरनाइ ओत्बे मुश्किल छै । चाहे आहान गाम आ छोट शहर के गप करू, चाहे आहान छोट शहर आ पाइग शहर के गप करू, चाहे भारत आ भारत के बाहर के गप करू, ई बात रहै छै कि वास्त्विक जिन्दगी मैं सीढी चढनाई आसान छै, किंतु नींचा उतरनाइ ओत्बे मुश्किल छै।

    ओई में जे सीढी चढई छे, ओकरा दुनू दुनिया के अनुभव आ आनन्द भेटे छै, आर वापस (गाम) आवइ के कारण (आनन्द) जनाय छे।

    ओना यथार्थ में, सामाजिक जिन्दगी में सीढी उतरनाइ आसान छै, किंतु चढनाई ओत्बे मुश्किल छै।


    Ravi Mishra
    http://hivcare.blogspot.com/

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